आचार्य विद्यासागर जी: एक जैन मुनि का अद्भुत जीवन

आचार्य विद्यासागर जी का जन्म कर्नाटक में हुआ था। उनके परिवार ने संसारिक जीवन को छोड़कर संन्यास लेने का निर्णय किया।

22 की उम्र में आचार्य विद्यासागर जी ने घर, परिवार को छोड़ संन्यास लिया। उन्होंने दीक्षा के बाद नमक-चीनी, हरी सब्जी, दूध-दही तक का त्याग किया।

संन्यास का प्रारंभ

आचार्य विद्यासागर जी ने अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली और उन्हें आचार्य पद सौंपा गया।

आचार्य श्रीज्ञानसागर से मुनिदीक्षा

विद्यासागर जी ने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया और लोगों को जैन धर्म की शिक्षा दी।

जीवन की यात्रा

उनका ज्ञान संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी, और कन्नड़ में था। उन्होंने कई रचनाएं, उत्तम स्तवना शतक और कई अन्य ग्रंथों को रचा।

ज्ञानवर्धन

उनका ज्ञान संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी, और कन्नड़ में था। उन्होंने कई रचनाएं, उत्तम स्तवना शतक और कई अन्य ग्रंथों को रचा।

धन का त्याग

उनका ज्ञान संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी, और कन्नड़ में था। उन्होंने कई रचनाएं, उत्तम स्तवना शतक और कई अन्य ग्रंथों को रचा।

आजीवन नमक-चीनी त्याग

शनिवार रात 2.30 बजे आचार्य विद्यासागर जी ने अपने शारीरिक आवश्यकताओं से त्याग दिया। आज उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है।

अंतिम संस्कार